जब 'सारा ज़माना हसीनों का दीवाना' गाने की रिकॉर्डिंग में मचा बवाल और किशोर दा ने इतिहास बना दिया
इंडेक्स
- परिचय
- याराना फिल्म और गानों का महत्व
- सारा ज़माना की रिकॉर्डिंग का माहौल
- 150 कोरस और 100 पीस आर्केस्ट्रा का चैलेंज
- किशोर दा का अजीब लेकिन विनम्र अंदाज़
- रिकॉर्डिंग की कहानी खुद राजेश रोशन की ज़ुबानी
- निष्कर्ष
परिचय
आज हम बात कर रहे हैं एक ऐसे गाने की, जो ब्लॉकबस्टर साबित हुआ लेकिन उसकी रिकॉर्डिंग के दौरान इतना बवाल मचा कि खुद राजेश रोशन तक घबरा गए। और किशोर दा ने ऐसा व्यवहार दिखाया जिसे सुनकर हर कोई उनकी सादगी और professionalism का दीवाना हो जाएगा।
याराना फिल्म और गानों का महत्व
1991 की फिल्म 'याराना' में कुल 7 गाने थे, जिनमें से 5 गानों को किशोर कुमार ने गाया:
- भोले ओ भोले
- देखा होगा मेरा यार
- छूकर मेरे मन को
- तेरे जैसा यार कहाँ
- सारा ज़माना हसीनों का दीवाना
यह फिल्म अमिताभ बच्चन की सुपरहिट फिल्मों में से एक थी। खासकर 'सारा ज़माना' गाने ने धमाका कर दिया था।
सारा ज़माना की रिकॉर्डिंग का माहौल
यह गाना कोलकाता के नेताजी सुभाष स्टेडियम में शूट होना था, जिसमें 12,000 लोग मौजूद थे। अमिताभ बच्चन ने लाइट वाली ड्रेस पहन कर लाइव भीड़ के सामने इसे शूट किया। शूटिंग के दौरान इतना क्रेज था कि नीतू सिंह बेहोश हो गईं और पुलिस को भीड़ नियंत्रित करने के लिए बल प्रयोग करना पड़ा।
150 कोरस और 100 पीस आर्केस्ट्रा का चैलेंज
गाने के म्यूजिक डायरेक्टर राजेश रोशन जी ने गाने की रिकॉर्डिंग के लिए 150 कोरस और 100 पीस आर्केस्ट्रा बुला लिया था। टारडिओ स्टूडियो, मुंबई में माइक लगाने की भी जगह नहीं थी। माइक स्टूडियो के बाहर तक लगाए गए। पूरा माहौल हंसी और अफरा-तफरी वाला था।
किशोर दा का अजीब लेकिन विनम्र अंदाज़
जब किशोर दा स्टूडियो पहुंचे और माहौल देखा, तो वो पहले तो चौंक गए। फिर बिना कुछ बोले, सीधे कोरस वालों के बीच जाकर बैठ गए और बोले "मैं कौन हूँ? मैं तो किशोर कुमार हूँ ही नहीं!"
उन्होंने चार घंटे लगातार फोकस के साथ ये गाना रिकॉर्ड किया और एक ही टेक में पूरा स्टूडियो झुमा उठा।
रिकॉर्डिंग की कहानी खुद राजेश रोशन की ज़ुबानी
राजेश रोशन ने बताया:
“स्टूडियो में खड़े होने की जगह नहीं थी। बाहर से माइक मंगवाए, जगह-जगह लगाए। माइक के सामने लोग खड़े, अंदर अफरा-तफरी। पर किशोर दा शांत, कोरस के बीच जाकर बैठ गए। वो मेरी हालत समझ गए थे। और फिर... जो गाया, वो आज भी अमर है।”
निष्कर्ष
'सारा ज़माना हसीनों का दीवाना' सिर्फ एक गाना नहीं, एक इतिहास है।
किशोर दा की यही खासियत थी नखरे नहीं, सिर्फ कमिटमेंट। उनके जैसी शख्सियत न पहले थी, न आगे होगी।