जब किशोर कुमार ने खुद कहा: 'मेरा गाना फिल्म से हटा दो'

अनुक्रमणिका

  1. परिचय
  2. फिल्म शहंशाह की शुरुआत
  3. रिकॉर्डिंग के पीछे की कहानी
  4. विवाद की शुरुआत
  5. किशोर दा की नाराज़गी
  6. अंतिम निर्णय और असर
  7. निष्कर्ष

परिचय

किशोर कुमार का नाम सुनते ही संगीत प्रेमियों के मन में एक अलग ही ऊर्जा दौड़ जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक ऐसा गाना भी था जिसे उन्होंने रिकॉर्ड तो किया, लेकिन बाद में खुद ही मना कर दिया कि उस गाने को फिल्म में शामिल न किया जाए?


फिल्म शहंशाह की शुरुआत

साल 1988 में अमिताभ बच्चन की कमबैक फिल्म शहंशाह रिलीज़ हुई। इसका निर्देशन टीनू आनंद ने किया और संगीत अमर-उत्पल की जोड़ी ने तैयार किया। फिल्म में कुल पाँच गाने थे, और सभी किशोर दा और लता जी को गाने थे।


रिकॉर्डिंग के पीछे की कहानी

किशोर दा ने दो गाने रिकॉर्ड किए:

  1. अंधेरी रातों में सुनसान राहों पर जो कि फिल्म का टाइटल सॉन्ग था।
  2. थानेदार तू होगा थानेदार एक हल्का-फुल्का मस्ती भरा गाना।

दोनों गाने सफलतापूर्वक रिकॉर्ड हो गए। तीसरे गाने 'जाने दो, मुझे जाना है' की बारी आई, जो अमर उत्पल ने बहुत धीमी गति में कंपोज किया था।


विवाद की शुरुआत

किशोर दा और लता जी दोनों को गाने की गति बहुत धीमी लगी। उन्होंने कंपोजर को सलाह दी कि इसे तेज़ बनाया जाए, पर अमर उत्पल अपनी बात पर अड़े रहे।

गाना रिकॉर्ड तो हुआ, लेकिन किशोर दा ने बाद में कहा कि यह गाना दर्शकों को पसंद नहीं आएगा।


किशोर दा की नाराज़गी

जब अमर उत्पल को बाद में एहसास हुआ कि गाना सच में अच्छा नहीं लग रहा, तो उन्होंने किशोर दा से दोबारा रिकॉर्ड करने की गुज़ारिश की। यहाँ तक कि एक्स्ट्रा पैसे का भी ऑफर कर दिया।

इस पर किशोर दा बहुत नाराज़ हो गए और बोले:

"मैंने बहुत पैसा कमाया है, अब मुझे शांति चाहिए। मेरा यह गाना फिल्म से हटा दीजिए और किसी और से गवा लीजिए।"

उन्होंने यह गाना दोबारा गाने से साफ मना कर दिया।


अंतिम निर्णय और असर

आखिरकार लता जी के सुझाव पर इस गाने को मोहम्मद अजीज से गवाया गया। यह गाना सुपरहिट साबित हुआ:

"जाने दो जाने दो मुझे जाना है, वादा जो किया है वो निभाना है"

लेकिन किशोर दा के फैन्स के लिए यह एक अफ़सोस की बात रही कि यह गाना उनकी आवाज़ में कभी रिलीज़ नहीं हुआ।


निष्कर्ष

यह किस्सा बताता है कि किशोर दा सिर्फ एक महान गायक ही नहीं थे, बल्कि उनके पास संगीत की गहरी समझ भी थी। पैसे से ज़्यादा उन्हें सम्मान और आत्मसंतोष की परवाह थी।

अगर यह गाना किशोर दा की आवाज़ में रिलीज़ होता, तो शायद इसकी ऊंचाइयाँ कुछ और ही होतीं।

आपको यह कहानी कैसी लगी? कमेंट में ज़रूर बताइए।


लेखक: संतोष (मूवी म्यूजिक मी)

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